आखिर बीबीसी की उस या ऐसी किसी डाक्यूमेंट्री में गुजरात दंगों के बारे में ऐसा नया क्या कहा बताया जा सकता है, जो खबरों में थोड़ी बहुत भी रुचि रखने वाला नहीं जानता! उन दंगों में किसी की भूमिका के बारे में ही कोई क्या नया बतायेगा. वह सब तो ये लोग खुद लगभग खुल कर बताते रहते हैं. कुछ महीने पहले ही- गुजरात में विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान एक रसूखदार नेता ने खुलेआम कहा था कि 2002 में हमने ‘दंगाइयों’ को जो ‘सबक सिखाया’, उसी कारण गुजरात में स्थायी शांति बनी हुई है. अब किसी को कैसा सबूत चाहिए. कुछ लोग डॉक्यूमेंट्री निर्माता की पहचान खोज कर उसकी मंशा पर सवाल कर रहे हैं. कुछ तो पूरे इंग्लैंड और तमाम अंगरेजों को ही भारत का शत्रु घोषित कर रहे हैं- कि ये तो ऐसे ही हैं. लेकिन जरा कल्पना करें कि इससे इंग्लैंड का कोई पत्रकार फिल्मकार यदि आज कांग्रेस, राहुल गांधी या नेहरू की आलोचना में कुछ लिख या कह दे, तो क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या तब भी वह भारत का अपमान माना जायेगा?
सच तो यह है कि सांप्रदायिकता का आरोप लगने से अब किसी को न तो कोई कष्ट होता है, न ही नुकसान. इस आरोप से इनकी एक समुदाय के हितैषी की छवि स्थापित होती है, साथ ही दूसरे समुदाय के विरोधी की भी. यही तो इनकी खास पहचान है, जिससे वोट मिलता है. फिर भी प्रकट में ऐसे आरोप को स्वीकार कर नहीं सकते, तो नाराज होने का दिखावा भी करना पड़ता है. हां, विदेशों में ये अपनी उस छवि पर इतरा नहीं सकते. और बीबीसी की डाक्यूमेंट्री से कष्ट इसलिए भी है कि उसकी पहुंच भारत तक सीमित नहीं रह सकती।
तो भारत सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए न सिर्फ उस डॉक्यूमेंट्री को सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर दिया है, बल्कि कोई मैसैज-कमेंट करने को भी प्रतिबंधित कर दिया है.
हालांकि एक ऑनलाइन पत्रिका स्क्रॉल (20 जनवरी) के मुताबिक “बीबीसी का कहना है कि 2002 के गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका पर बनी डॉक्यूमेंट्री पर गहन शोध किया गया है. उसके एक प्रवक्ता ने कहा कि बीबीसी ने भारत सरकार से अपना पक्ष रखने के लिए कहा था, लेकिन उसने जवाब देने से इनकार कर दिया.”
भारत के सम्मानित पत्रकारों में से एक _द हिंदू_ के पूर्व एडिटर-इन-चीफ एन राम ने सरकार द्वारा यूट्यूब और ट्विटर पर बीबीसी के वृत्तचित्र ‘इंडिया : द मोदी क्वेश्चन’ को ब्लॉक करने के प्रयास को सेंसरशिप के समान बता कर आलोचना की है.
प्रसंगवश, इंदिरा गांधी के निरंकुश के दौर में उनके एक चाटुकार और कांग्रेस के बड़े नेता असम के पूर्व मुख्यमंत्री और बिहार के राज्यपाल रह चुके देवकांत बरुआ ने ‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा’ जैसा नायाब जुमला गढ़ा था. उन्होंने ही इंदिरा जी की आरती इस तरह उतारी थी- ‘तेरे नाम की जय, तेरे काम की जय; तेरे सुबह की जय, तेरे शाम की जय.’
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Srinivas
Srinivas is a Ranchi (Jharkhand, India) based veteran journalist and activist. He regularly writes on contemporary political and social issues.