लखनऊ। अवध रेज़िडेंट की आरामगाह। ब्रिटिश रेज़िडेंट का दावतखाना। अंग्रेज महिलाओं, बच्चों का शरणस्थल। गदर का गल्ला-गोदाम। अस्पताल। गोथिक शैली का सेन्ट मेरी गिरिजाघर। अंग्रेजों की कब्रगाह। 1857 की क्रांति की प्रयोगशाला। अंग्रेज प्रशासक हेनरी लॉरेंस की कब्रगाह… ये सब कुछ समेटकर एक शब्द में कहा जाए तो वह है-“रेज़िडेंसी!”
लखनऊ रेज़िडेंसी की बुनियाद अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने रखी। उनके बारे में कहा जाता था -‘जिसे न दे मौला, उसे दे आसिफुद्दौला।’ गोमती बहाव क्षेत्र में पड़ने वाले खूबसूरत टीले पर रेज़िडेंसी का काम शुरू कराने वाले आसिफुद्दौला निर्माण पूरा नहीं करा सके थे। कालांतर में नवाब सआदत अली खां (1798-1814) ने रेज़िडेंसी की तामीर पूरी की। इस इमारत का मकसद था – सुविधा व जरूरत को देखते हुए अंग्रेजों को ऊंचे टीले पर बसाना। दरअसल, इस इमारत में ब्रिटिश जनरल और उनके सहयोगियों की रिहाइश थी। उस जमाने में ब्रिटिश अधिकारी नवाबों की अदालतों में ब्रिटिश हुकूमत और उसके अधिकारियों का पक्ष रखने के लिए निय़ुक्त किये गये थे।
लखनऊ की ब्रिटिश रेज़िडेंसी दरअसल एक दर्जन से अधिक इमारतों का समूह है। चारों ओर खूबसूरत बागों से घिरा और बलखाती गोमती के करीब बना ये आलीशान परिसर अंग्रेजों को खूब रास आया। यह अंग्रेजों का गढ़ बन गया। इसमें अंग्रेजी सेना के शीर्ष अधिकारी, उनके परिवार के लोग, और सैनिक भी रहते थे। यह परिसर एक तरह से एक शहर था, जहां सामान्य जीवन की हर सुविधा उपलब्ध थी।

लखौरी ईंट और सुर्ख चूने से बनी मुख्य दोमंजिली इमारत में कई बड़े-बड़े बरामदे हैं। रेज़िडेंसी के नीचे बड़ा तहखाना है। शुरू में ये अवध के रेज़िडेंट का ठिकाना था। अवधी हुकूमत ने इमारत में ब्रिटिश रेज़िडेंट के लिए खूबसूरत दावतखाना बनवाया था, जिसे यूरोपियन फर्नीचर और चीन के सजावटी सामान से सजाया गया था। मुख्य कक्ष में अनवरत फाउंटेन चलते थे। बादशाह नसीरुद्दीन हैदर के दौर में इस हॉल में बहुत दावतें हुआ करती थीं। शानो-शौकत व सुरक्षा की प्रतीक इस इमारत में कुछ समय तक ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से नियुक्त अधिकारी भी रहे।

इस परिसर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही बेली गेट नजर आता है। यह गेट नवाब सआदत अली ने अंग्रेज कैप्टन बेली के नाम पर बनवाया था। इसका काफी हिस्सा जर्जर हो गया था, हाल ही में इसका जीर्णोद्धार किया गया है। इसी रास्ते से मुख्य भवन तक जाने के लिए पक्की सड़क थी। नवाबों ने अंग्रेजों की इज्ज़त की थी। लेकिन यहाँ अपनी स्थिति मज़बूत करने के बाद अंग्रेजों ने नवाबों को उखाड़कर ब्रिटिश हुकूमत का झन्डा बुलंद करने की साजिशें शुरू कर दीं। इसी परिसर से ब्रिटिश जनरलों ने लखनऊ पर ब्रितानिया झन्डा फहराने में काफी हद तक कामयाबी भी हासिल कर ली। अवध के आखिरी नवाब ने संघर्ष के स्थान पर समर्पण का रास्ता चुना और कोलकाता पलायन कर गये।

लेकिन लखनऊ की अवाम को गुलामी बर्दाश्त नहीं थी। लिहाजा, अवध के आखिरी नवाब की वंशज बेगम हजरत महल के झन्डे तले क्रांति का बिगुल फूंक दिया। और सत्ता का केन्द्र रही यह इमारत देखते-देखते गदर (पहला स्वतंत्रता आंदोलन) के गोला बारूदों की गवाही देने वाले स्मारक में तब्दील हो गयी।
अवध एक दौर के नवाबों की शराबनोशी और अय्याशी के लिए मशहूर है तो उसका दूसरा पहलू वीर रस से भरा पड़ा है। आज़ादी के मतवालों की हिम्मत के सबूत देखने के लिए रेज़िडेंसी शायद सबसे सही जगह है।
स्वतंत्रता के दीवानों ने अंग्रेज अधिकारियों के इस गढ़ पर 86 दिन तक कब्जा जमाए रखा था। इस दौरान उनका अंग्रेज अधिकारियों और सैनिकों के साथ जबरदस्त मुकाबला हुआ था, जिसमें कई छोटे-बड़े अंग्रेज अधिकारी और सैनिक मारे गये थे। इसमें कई हिंदुस्तानी सैनिक शहीद हुए।

लखनऊ के इतिहास को जीवनभर समेटते रहे इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन ने कहा था- जब क्रांति का बिगुल बजा तब रेज़िडेंसी में सर्वप्रथम 1 जुलाई 1857 को कर्नल पामर की बेटी के पैर में गोली लगी थी, जो क्रांति की एक लौ थी। अगले ही दिन यानी 2 जुलाई 1857 इसी भवन की ऊपरी मंजिल के पूर्वी सिरे वाले कमरे में सर हेनरी लॉरेंस को क्रांतिकारियों ने गोली मारी थी। उसके बाद यह भवन खूनी संघर्ष का अखाड़ा बन गया। 8 जुलाई के हमले में रेवरेंड पोलीहेम्पटन यहां बहुत बुरी तरह से जख्मी हुए।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्व
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में रेज़िडेंसी एक अहम मुकाम है। जून 1857 में बेगम हजरत महल के प्रमुख सहायक राजा जियालाल में लड़ी गई चनहट (अब चिनहट) की लड़ाई के अगले दिन को सैय्यद बरकत अहमद के नेतृत्व में हिंदुस्तानियों ने इस विदेशी गढ़ पर गोलीबारी शुरू कर दी। लम्बी घेरेबंदी के दौरान तमाम अंग्रेज परिवार यहां कैद रहे। 17 नवंबर 1857 की रात मौलवी अहमद उल्ला शाह ने रेज़िडेंसी पर आखिरी हमला किया, जिसके दूसरे दिन कॉलिन कैम्पबेल कानपुर से सेना लेकर आए और फिर उस पर अंग्रेजों का कब्ज़ा हो गया। रेज़िडेंसी का एक प्रमुख हिस्सा अंग्रेज सैनिकों और भारतीय विद्रोहियों के बीच की लड़ाई में नष्ट हो गया था। युद्ध के बाद इसे वैसे ही छोड़ दिया गया। रेज़िडेंसी की टूटी-फूटी दीवारों में आज भी तोप के गोलों के निशान हैं। इस परिसर में एक कब्रिस्तान है जिसमें लगभग 2000 अंग्रेज सैनिकों, आदमियों, औरतों और बच्चों की कब्र है।

हेनरी लारेंस का स्मारक
इतिहासकार बताते हैं कि रेज़िडेंसी में रहने वाले ब्रिटिश अधिकारियों में सबसे ज्यादा कुशल हेनरी लॉरेंस ही थी, स्वतंत्रता आदोलन की पहली लड़ाई, जिसे अंग्रेज इतिहासकारों ने गदर कहा, उसमें क्रांतिकारियों का निशाना बने हेनरी की मजार पहले 51 फीट ऊंचे और बड़े घेरे में बनी थी। नवाबों का शासन खत्म होने के बाद 1904 में अंग्रेजी शासन काल में उसे ये नई रूपरेखा दी गई और आज भी वह उस अंग्रेजों के तत्कालीन वैभव व लॉरेंस की शक्ति की कहानी कहती प्रतीत होती है।
रेज़िडेंसी में क्या-क्या
1810 में रेज़िडेंसी में बना गाथिक शैली का सेंट मेरी गिरिजाघर गदर के समय गल्ला गोदाम बना दिया गया था। स्वतंत्रता संग्राम में मारे गए लॉरेंस की कब्र इसी चर्च के एक हिस्से में है। इसी के पास नवाब मुस्तफा खां और मिर्जा मुहम्मद हसन खां की मजार भी है।
ट्रेजरी हाउस
रेज़िडेंसी में ही यूरोपियन अधिकारियों का विनियम विभाग भी था। जब आजादी का संघर्ष शुरू हुआ तो इसमें ही एनफील्ड गन की गोलियां बनाई जाती थी । इसके निकट बरगद के पास रेज़िडेंसी का पोस्ट आफिस था जिसमें गदर के समय टूल्स शेल्स का निर्माण होने लगा। जब क्रांतिकारियों ने रेज़िडेंसी पर कब्जा कर लिया था, तब अंग्रेज औरतों, कुछ सैनिकों और बच्चों ने इसी भवन के तहखाने में शरण लिया था। संघर्ष, बलिदान और स्वाभिमान का इतिहास समेटे इस रेज़िडेंसी में आजाद भारत की सरकार ने 1857 मेमोरियल म्यूजियम स्थापित किया गया है, जहां 1857 में हुई भारत की आजादी की पहली क्रांति को बखूबी चित्रित किया गया है।

इतिहास
-लखनऊ के केसरबाग में बनी रेज़िडेंसी करीब 33 एकड़ में फैली है।
-1780 में अवध के नवाब आसिफुउद्दौला ने इसका निर्माण शुरू कराया
– ब्रिटिश हुकूमत ने इसी परिसर में तैयार रणनीति के तहत 7 फरवरी 1856 को अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को अयोग्य घोषित कर सत्ता छीनी
– 10 मई 1857 को क्रांतिकारियों ने रेज़िडेंसी को घेरकर हमला किया।

डॉ. नीलू शर्मा
Dr. Neelu Sharma is an Assistant Professor at Amity School of Communication, Lucknow. She is a photographer and cinematographer. Her interest lies in documenting reality. Contact info- [email protected]
Nicely covered all the details about the Lucknow’s British Residency with its historic significance during India’s struggle for Independence.
बहुत ही सुन्दर तरीके से लिखा है . कई बार रेजीडेंसी गया पर इस दृष्टि से नहीं देखा .🙏
बहुत ही सुन्दर तरीके से लिखा है . कई बार रेजीडेंसी गया पर इस दृष्टि से नहीं देखा .🙏
Enlightening 👍🏻 Great work!
Well articulated article and gives an quick insight into Lucknow’s rich heritage history.