सुनक की ताजपोशी पर ऐसा आह्लाद!

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सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने पर भारतीयों का खुश होना अस्वाभाविक नहीं है. मगर इन खुश होनेवालों को ईसाई बहुल, मूलतः गोरों के देश इंग्लैंड की परिपक्वता की, ब्रिटेनवासियों की उदारता की खुले मन से प्रशंसा भी करनी चाहिए कि उन्होंने एक ‘बाहरी’ और ‘विधर्मी’ को इस पद पर बिठा दिया. इसके साथ ही ‘हमें’ अपनी संकीर्णता पर शर्मिंदा भी होना चाहिए.

इस आह्लाद के पीछे का सच यह है कि यह किसी ‘भारतवंशी’ के इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बनने का ही उल्लास नहीं है. ऐसे लोगों में बहुमत उनका है, जो सुनक के ‘हिंदू’ होने से आह्लादित हैं; और उनमे भी बहुतेरे उनके ‘ब्राह्मण’ होने से गदगद हैं. सुनक ने सांसद बनाने पर ‘गीता’ को छूकर शपथ ली थी, यह उनके लिए गर्व करने का एक अतिरिक्त कारण है. इस बात का एक प्रमाण है मेरे एक मित्र द्वारा भेजा गया, किसी न्यूज चैनल पर जारी यह फ्लैश संदेश- ‘ब्राह्मण कुल में जन्मे ऋषि सुनक करेंगे अंग्रेजों पर राज. देश के लिए गर्व का तथा ब्राह्मण विरोधियों के लिए आत्ममंथन का क्षण.’ बहुतेरे चैनलों पर इस तरह के शीर्षक, ट्वीट और फेसबुक पर इसी से मिलते-जुलते मैसेज भरे पड़े हैं.

जरा कल्पना कीजिये कि ‘सुनक’ की जगह ‘सुलेमान’ नाम का कोई ‘भारतवंशी’ होता, तो भारत में कैसी प्रतिक्रिया हो रही होती. भले ही उस ‘सुलेमान’ का दादा भी कभी बिहार या यूपी के किसी गांव से मारीशस या फिजी गया होता. ध्यान रहे कि सुनक के दादा गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) से कहीं बाहर गये थे.

सच यह है कि पहले भी भारतवंशी अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष बनते रहे हैं. आज भी ब्रिटेन के अलावा छह देशों (मॉरीशस, सिंगापुर, सूरीनाम, गुयाना, सेशेल्स और पुर्तगाल) के राष्ट्र-प्रमुख भारतीय मूल के हैं. बेशक उनकी तुलना में इंग्लैंड एक महत्वपूर्ण देश है. इसके अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, गुयाना और सेशेल्स में भारतवंशी लगभग बहुमत में हैं. इसलिए उन देशों में उनका प्रधानमंत्री बनाना खास महत्त्व की बात नहीं है. सिंगापुर बहुत छोटा देश है. लेकिन पुर्तगाल ने तो हमारे एक हिस्से (गोवा- दमन-दीव) पर चार सौ साल से भी अधिक समय तक राज किया. अंगरेजों से, मुगलों से भी पहले आये और अंग्रेजों के जाने के बाद सैन्य कारवाई के बाद गोवा मुक्त हुआ. पुर्तगाल में भारतवंशियों की तादाद भी अधिक नहीं है. फिर भी भारतीय मूल के एंटोनियो कोस्टा वहां के प्रधानमंत्री बने. पुर्तगाली जनता इसके लिए सलाम की हक़दार है. मगर भारत में इसकी खास चर्चा भी नहीं हुई! इसलिए कि श्री कोस्टा ‘हिंदू’ नहीं हैं?

इन सबके बावजूद मुझे सुनक का प्रधानमंत्री बनना बुरा नहीं लगा. इसे महज संकीर्ण ‘नस्लवाद’ नहीं माना जाना चाहिए, यह नस्ल और क्षेत्र के आधार पर निकटता का स्वाभाविक एहसास है, जो जरूरी नहीं कि किसी अन्य नस्ल या क्षेत्र के विरुद्ध हो. एक ‘भारतीय’ उस देश का प्रधानमंत्री बन गया, जिसने हमारे देश को दो सौ साल तक उपनिवेश बना कर रखा था, इस बात से थोड़ी गुदगुदी तो होती ही है.

इसी गुदगुदी की सहज मजेदार अभिव्यक्ति चर्चित लेखक अशोक कुमार पांडेय के इस फेसबुक पोस्ट में हुई है- चर्चिल अचानक अपनी क़ब्र में जागा तो BBC पर ख़बर चल रही थी कि भारतीय मूल का ऋषि सुनक ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन गया है. उसने दूसरी तरफ़ देखा तो गांधी मुस्कुरा कर कह रहे थे – हम भारत का ही नहीं, ब्रिटेन का राज चलाने लायक़ भी हो गये हैं मिस्टर चर्चिल.

हम जानते हैं, चर्चिल नस्लवादी थे. लेकिन आज का इंग्लैण्ड उस नस्लवाद को पीछे छोड़ चुका है. हम कब अपनी नस्ली और धार्मिक संकीर्णता से उबरेंगे? ऋषि सुनक की ताजपोशी पर हमने जिस तरह उल्लास जताया, उससे तो हमारी संकीर्णता और प्रमाणित ही हुई है.

Srinivas
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Srinivas is a Ranchi (Jharkhand, India) based veteran journalist and activist. He regularly writes on contemporary political and social issues.

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