भारत को आजादी भले 15 अगस्त को मिली पर वहाँ आम जन यानी गण का तंत्र 26 जनवरी को ही स्थापित हुआ, जब देश का अपना संविधान लागू हुआ. अन्य देशों की तरह कायदे-कानूनों को लिपिबद्ध कर के देश को नए रीति रिवाजों से संचालित करने की औपचारिक शुरूआत इसी दिन हुई थी। इसीलिए इंडिया गेट पर विजय चौक से अमर जवान ज्योति तक कर्तव्य पथ पर जब झांकी आगे बढ़ती है तो हजारों भारतीय जन गणतंत्र के इस ऐतिहासिक पर्व को देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं. यह परेड न केवल राष्ट्र की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करती है वरन् सांस्कृतिक विविधता के बीच अटूट एकता को सगर्व प्रदर्शित करती है जो हमारी विरासत का प्रतीक है. सैन्य बल का प्रदर्शन हमें याद दिलाता है कि हम आज इस गणतंत्र में कितने सुरक्षित हैं.
हमारे संविधान की प्रस्तावना में है कि भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य होगा, तथा यह सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करेगा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए बंधुत्व को बढ़ावा देगा.
भारत में ईसा पूर्व छठी सदी से ही ज्ञात गणतंत्र था. बुद्ध का जन्म एक गणतांत्रिक राज्य में हुआ था, जो संघ का सदस्य था. कौटिल्य ने राजव्यवस्था पर अपने प्रतिष्ठित ग्रंथ में अपने समय में गणतंत्र की मजबूतियों और कमियों पर विस्तार से टिप्पणी की है.
ब्रिटेन की औपनिवेशिक सरकार से आज़ाद होने के सात दशक से ज्यादा बीत जाने के बाद राजनीति की दिशा से कुछ लोग विचलित होते हैं, लेकिन उसी राजनीति से दूरदर्शी, समर्पित, और निष्ठावान प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति भारत को मिले हैं. अमेरिकी लोकतंत्र का इतिहास 300 वर्षों से भी पुराना है पर वहाँ अब तक किसी महिला को सर्वोच्च पद नहीं मिला. पहली बार बेशक जो बाइडेन के अस्वस्थ होने के कारण भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस कुछ घंटों के लिए कार्यकारी राष्ट्रपति बनीं हों, लेकिन पिछले 70 वर्षों में भारत ने अल्पसंख्यकों, दलितों और अब आदिवासी महिला को राष्ट्रपति बनाकर विश्व को सच्चे गणतंत्र का संदेश दिया है. भारत को महिला प्रधानमंत्री तो बहुत पहले मिल गई थीं. इसलिए हर बार गणतंत्र दिवस पर जब भारतीय सेना के साथ समाज को प्रतिबिंबित करने वाली झांकियां तथा नर्तकों की टोलियाँ राजपथ से लाल किले तक निकलती हैं तो पूरी दुनिया में विविधता में एकता, अखंडता तथा दृढ़ता का संदेश देती हैं.
भारतीय संविधान के पूर्णतः भारतीय न होने और अनेक अन्य आरोप प्रत्यारोप लगते हैं, पर इतना सभी को विश्वास भी है कि इसके लचीलेपन के कारण संसद की बहुमत से इसमें 125 से भी अधिक संशोधन भी किए जा चुके हैं . विरोध और समर्थन को लोकतंत्र की खूबसूरती कहा जाता है पर देशविरोधी और स्वार्थी शक्तियां संविधान को गौण करने का प्रयास करती रहती हैं. 26 जनवरी को कश्मीर से लेकर माओवादी प्रभाव वाले इलाकों तक में तिरंगा नहीं फहराया जा सके, इसके लिए कितने हिंसक आंदोलन हुए. तिरंगा जलाया भी गया जबकि भारत भूमि के प्रतीक के रूप में सीमाओं पर तिरंगा फहराने के लिए कितने वीर सैनिक शहीद हो गए. इस तिरंगे की आन बान और शान के लिए कितने जाने अनजाने लोग स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब तक शहीद हुए हैं पर कुछ स्वार्थी लोगों को राजनीति चमकाने के लिए इसी झंडे का अपमान करने में हिचक नहीं होती. स्मरण रहे कि देश का संविधान आपको अधिकारों के साथ कर्तव्य भी देता है। देश के प्रति अपने कर्तव्य की अनदेखी न करें।
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सुनील बादल
सुनील बादल 42 वर्षों से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े हैं . झारखंड और भारत की पत्र पत्रिकाओं में लेख और कॉलम छपते रहे हैं .एक उपन्यास सहित झारखंड पर केंद्रित दस सम्मिलित पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं.
उत्तम जानकारी 👍👍
इसी तरह आपकी लेखनी सतत चलती रहे।
हार्दिक बधाई !